कैशलेस करने के नाम पर जनता को चूना

एक समय जब बैंक का इतना प्रसार नही हुआ था तब लोगो को अपना पैसा रखने की एक मात्र जगह थी “गाँव का साहूकार” जो लोगो का पैसा अपने पास रखता था परन्तु उसपर कोई व्याज तो देता नहीं था बल्कि 10% पैसा रखने का काट भी लेता था| मज़े की बात यह थी की जब आप अपना पैसा मांगते थे तब वह आपसे हज़ार सवाल पूछता था| जैसे किस लिए पैसा चाहिए; इतना क्यों चाहिए; थोड़ा थोडा लो; अभी तो पैसा है नहीं, उधर वसूली करके दूंगा| मतलब यह की पैसा आपका मगर उसका मालिक था साहूकार|

अब इसी साहूकार का आधुनिक रूप आज के बैंक है| खासकर प्राइवेट बैंक जो वो हर मौक़ा खोजते है जब वे आपके अपने पैसे में से कटाई कर सके| सोने पर सुहागा “नोटबंदी” सिद्ध हुई| प्रधानमंत्री के “कैशलेस” सोसाइटी की कल्पना को रजाई की तरह ओढ़कर ये बैंक रोज़ नई नई स्कीम बनाकर लोगो का पैसा उड़ाने की स्कीम बनाते रहते है|

इसी मार्च से एचडीएफसी, आईसीआईसीआई और एक्सिस बैंक ने होम ब्रांच में बचत और वेतन खातों से महीने में चार बार से ज्यादा या नकद लेन-देन पर न्यूनतम 150 रुपये या प्रति एक हजार पांच रुपये का शुल्क लगा दिया है। होम ब्रांच से इतर अपने ही बैंक की अन्य शाखाओं से नकद लेन-देन की शर्त और कड़ी है। मसलन आईसीआईसीआई बैंक अन्य ब्रांच से एक बार के बाद हर नकद लेन-देन पर ग्राहकों से शुल्क लेगा। बैंकों का ये फैसला इसलिए भी स्तब्ध कर देने वाला है क्योंकि ये तीनों बैंक मुनाफे में हैं।

दो दशकों में ज्यादातर बैंकों ने केंद्रीयकृत कम्प्यूटर प्रणाली अपनाने कर कोर बैंकिंग सिस्टम (सीबीएस) अपना लिया है| ताकि कम्प्यूटर और इंटरनेट के माध्यम से बैंक की सभी शाखाओं (ब्रांच) एक आंकड़े एक जगह उपलब्ध हों और आप बैंक की किसी भी शाखा से लेन-देन कर सकेंगे। ऐसा होने भी लगा। आज 2017 में आपको अपने बैंक खाते में नकद लेन-देन करने के लिए अपनी होम ब्रांच (जहां मूलतः खाता खुलवाया गया था) में जाना जरूरी नहीं रह गया। आर्थिक उदारीकरण के बाद तेजी से बदलते देश की ये जरूरत भी थी।

आर्थिक उदारीकरण के बाद देश के एक कोने से दूसरे कोने नौकरी करने जाना आम बात हो गयी। ऐसे में अपने ही बैंक में ब्रांच बदलवाना गैर-जरूरी हो गया। इससे खाता धारक और बैंक दोनों के समय और संसाधनों का नुकसान ही होता है। कम्प्यूटरिकृत सिस्टम में बैंकों को होम ब्रांच के इतर किसी दूसरी ब्रांच में आने वाले ग्राहकों को सुविधा देने के लिए कोई अतिरिक्त खर्च शायद ही करना होता है। ऐसे में उम्मीद की जा रही थी कि बैंक होम ब्रांच के इतर बाकी ब्रांच से लिए किए जाने वाले लेन-देन को पूरी तरह खत्म कर देंगे।

लेकिन बैंकों द्वारा चार लेनदेन के बाद कम से कम ऐसा कदम उठाया जो बैंकिंग सिस्टम को बीस साल पीछे ले जाने वाला प्रतीत होता है। एक तरह से बैंक ग्राहकों को अपनी नजदीकी शाखा में जाने के बजाय होम ब्रांच में जाने के लिए बाध्य कर रहे हैं।

ऐसा नहीं है कि बैंकों के होम ब्रांच से इस प्रेम के शिकार वही होंगे जो एक शहर से दूसरे शहर जा रहे हों। दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में लाखों लोग शहर के एक कोने से दूसरे कोनों में नौकरी बदलती रहते हैं। यानी पहली नौकरी के दौरान उन्होंने जहां खाता खुलवाया होगा उन्हें बार-बार वहां तक लौट के जाना होगा। या फिर हर बार नौकरी बदलने के साथ बैंक ब्रांच भी बदलवाना होगा।

बैंकों के फैसले का बचाव करने वाले कुछ टिप्पणीकारों का कहना है कि बैंकों के इस कदम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नकद-मुक्त अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। लोग बैंक ब्रांच में लेन-देन करने के बजाय डिजिटल और मोबाइल बैंकिग की तरफ बढ़ेंगे। लेकिन सवाल ये है कि क्या डिजिटल और मोबाइल बैंकिंग को बढ़ावा देने के लिए ग्राहकों की जेब काटी जाएगी? बैंकों का सारा मुनाफा ग्राहकों द्वारा जमा पैसे के इस्तेमाल से ही आता है। ऐसे में पहले से ही बड़े मुनाफे में चल रहे ये बैंक ग्राहकों द्वारा अपना ही पैसा जमा करने या निकालने पर पैसा कैसे वसूल सकता है?  ऐसे में क्या ये कहना गलत है कि ये प्राइवेट बैंक नरेंद्र मोदी के कैंपेन की आड़ में जनता को चूना लगा रहे हैं?

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Pradeep Shanker