गन्दी राजनीति

गन्दी राजनीति

politicsकल एक केंद्रीय महिला मंत्री ने रामज़ादे और हरामज़ादे शब्द का प्रोयोग करके मधु मक्खी का छत्ता छेड़ दिया है. इसमें कोई दो राय नहीं होसकती की इस तरह के शब्द, किसी के लिए ख़ास कर प्रितिपक्ष के लिए, प्रयोग करना आधुनिक समाज में वर्जित होना चाहिए. दुःख इस बात का है की फिर भी इस तरफ के शब्द या वाक्य खंड प्रयोग होते ही रहते है. साथ ही इस तरह के मामले में समाचार माध्यम का रोल अतिसंदिग्ध है. आधे वाक्य या शब्दों को विशेष स्थान पर ज़ोर देते हुए अर्थ का अनर्थ करते हुए समाचार माध्यम केवल अपने TRP के लिए शोर मचाते रहते है. और उनकी त्वरा तब तेज़ हो जाती है जब ऐसे शब्द बीजेपी या किसी हिन्दू संगठन के तरफ से निकल कर आते हों .

अब कल की ही बात लीजिये. हरमजायदे शब्द मंत्री ने किसके लिए प्रयोग किया यह तो वही जाने. परन्तु प्रथम दृष्टि में ऐसा लगता है की मंत्री के निशाने पर प्रितिपक्ष था. निश्चित तौर पर यह गलत है. बीजेपी ने मंत्री से माफ़ी मगवा कर ठीक किया. प्रधान मंत्री ने भी चेतावनी देदिया. परन्तु मीडिया ने क्या किया. रविश ने प्राइम टाइम में एक गिरजा घर के जले जाने को इससे जोड़ कर इसे सेक्युलर बनाम कम्युनल का रंग देदिया. क्या मंत्री ने यह शब्द अल्पसंख्यक समुदाय के लिए प्रयोग किया था? निश्चित तौर पर नहीं क्योंकि अल्पसंख्यक समुदाय की कोई पार्टी गंभीर रूप में सत्ता के लिए चुनाव नहीं लड़ रही है. फिर इस बयान को धार्मिक रंग देने का क्या अर्थ है?

उधर राज्य सभा में भी इस बात को लेकर हंगामा हो रहा है. सांसद मंत्री को बर्खास्त करने की मांग पर अड़े हुए है. राम गोपाल जी ने भी इस शब्द को अल्पसंख्यक समुदाय से जोड़ दिया. होसकता है उनकी समझ में यही हो. परन्तु क्या वे और अन्य सांसद अपने पार्टी के कार्यकर्त्ता और नेताओ की भाषा पर कभी ध्यान देते है? किसने “मारो जूते चार” का नारा दिया? किसने मौत का सौदागर शब्द का प्रयोग किया था? किसने कहा था ज़हर की खेती करने वाले? किसने राम लल्ला मंदिर आंदोलन करने वालों के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग किया था? किसने यमराज, आलू टमाटर शब्दों का प्रयोग किया था? कौन है वो लोग जो जो हिन्दू धर्म को धर्म ही नहीं मानते? किसने सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट दिया था की राम लल्ला एक काल्पनिक पात्र है?

क्या यह सब सेक्युलर है? क्या इस तरह की भाषा वर्ग विशेष को आघात नहीं पहुचती है? कांग्रेस उपाध्यक्ष ने कहा था कि मोदी पीएम बने तो कम से कम पच्चीस हजार लोग मारे जाएंगे और देश के टुकड़े हो जाएंगे. कहां हुआ कत्लेआम और कहां हुए देश के टुकड़े. जो लोग एक देहाती परिवेश की कम शिक्षित राज्यमंत्री के बयान में उसकी भावना खोज रहे हैं, उन्हें बिलायत से पढ़े राहुल की भावना भी खोजनी चाहिए. 

फिर भी मैं यह कहना चाहता हु की आज बीजेपी सत्ता रूढ़ है. उसकी ज़िम्मेदारी अधिक है. उसे और अधिक सावधान रहना चाहिए. समस्त प्रतिपक्ष उसे कम्युनल सिद्ध करने पर लगा है चाहे इसके लिए उनको किसी हद्द तक जाना पड़े. यह एक कड़वी सच्चाई है. आखिर कार सत्ता जाने का दुःख तो होता ही है. बीजेपी ने भी २००४ में सत्ता खोने के बाद अति अभद्र व्योहार किया था. उस समय के प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को ना केवल मंत्रिमंडल का परिचय देने से रोक बल्कि उनको संसद को सम्बोधित करने से रोक, जो बहुत गलत था. अब उसको अपनी किये को भुगतना पड़ रहा है.

परन्तु फिर यह बार बार ना हो इस लिए बीजेपी को ना केवल अति सभ्यता से बोलना होगा बल्कि प्रधान मंत्री जी को अपने सांसद एवं कार्य-कर्ताओं  को कड़ी चेतावनी देनी होगी. आखिरकार गुजरात में वे यह कर चुके है. गुजरात में मोदी जी ने तोगड़िया जैसे लोगों पर लगाम लगा दी थी. उनको यही काम पुरे भारतवर्ष में करना होगा जिससे पुरे देश में धार्मिक सौहार्द बना रहे और किसी भी अल्पसंख्यक वर्ग को किसी भी तरह का भय ना हो. इस बारे में विपक्ष का हंगामा महज नौटंकी है,

प्रधानमंत्री को इस तरह के अपनी पार्टी के बयानवीरों का गंभीरता से संज्ञान लेकर नकेल कसनी चाहिए, वरना सबका साथ-सबका विकास के उनके नारे की हवा निकलते देर नहीं लगेगी. साथ ही प्रतिपक्ष यह अच्छी तरह से समझ ले की बहु सांख्य समुदाय की भावना से खिलवाड़ कर वह ना देश का, ना अपना,  ना ही अल्पसंख्य वर्ग का भला कर रहे है. अगले चुनाव साढ़े चार साल दूर है. अभी से शोर मचा कर क्या होगा?

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