Father, Son & Great Recession

The first duty of a university is to teach wisdom, not trade; character, not technicalities.  —Winston Churchill

There is a story about a man who sold Chole-Pature by the roadside. He was illiterate, so he never read newspapers. He was hard of hearing, so he never listened to the radio. His eyes were weak, so he never watched television. But enthusiastically, he sold lots of hot dogs. His sales and profit went up. He ordered more meat and got himself a bigger and a better stove. As his business was growing, the son, who had recently graduated from college, joined his father. Then something strange happened. The son asked, “Dad, aren’t you aware of the great recession that is coming our way?” The father replied, “No, but tell me about it.” The son said, “The international situation is terrible. The domestic is even worse. We should be prepared for the coming bad time.” The man thought that since his son had been to college, read the papers, and listened to the radio, he ought to know and his advice should not be taken lightly. So the next day, the father cut down his order for the meat and buns, took down the sign and was no longer enthusiastic. Very soon, fewer and fewer people bothered to stop at his hot dog stand. And his sales started coming down rapidly. The father said to his son, “Son, you were right. We are in the middle of a recession. I am glad you warned me ahead of time.

Today the owner of that famous shop is working as a cook in another shop and the son is still without job. Why not the country is under Recession.


विश्वविद्यालयों का पहला काम बच्चो को बुद्धिमान बनाना है, ना की व्यापार सिखाना| उनका पहला काम बच्चो के चरित्र सुधाना है, ना की तकनिकी सिखाना|  —Winston Churchill

ये कहानी उस आदमी की है जो सडक किनारे छोले-पठुरे बेचता था| वह अनपढ़ था इसलिए वह अखबार नहीं पढ़ पाता था| उसको सुनाई और दिखाई भी कम देता था इसलिए वह ना तो रेडिओ सुनता था ना ही टीवी देखता था| परन्तु वह छोले-पठुरे बढ़िया बनता था और उसको बड़े प्रेम से अपने ग्राहकों को गरमा-गर्म बेचता था|

धीरे-धीरे उसका व्यापार बढ़ता गया और साथ में उसका मुनाफा भी बढ़ता गया| उसने और अधिक छोले-पठुरे बनाने लगा; जिससे उसके मुनाफे में और भी अधिक बढ़ोतरी होती गई| बढे मुनाफे से उसने अपने पुत्र को नामी-गिरामी कॉलेज में डोनेशन देकर MBA करवाया| MBA कर बेटा घर आया और समय काटने के लिए अपने पिता के रोड-साइड ढाबे में बैठने लगा|

एक दिन बेटा ने पिता जी से पूछा “पिता जी! क्या आप जानते है कि सारी दुनिया में भयानक मंदी आ रहे है?” पिता ने सकपकाते हुए अपने शिक्षित बालक के इस बारे में और अधिक बताने को कहा| बच्चे ने एक “Power-Point presentation” के द्वारा उसे अतर्राष्ट्रीय मंदी और उसका देश के व्यापार में पड़ने वाले दुष्प्रभाव में बारे में बताया और यह भी बताया की उससे कैसे बचा जा सकता है|

पिता ने अपने शिक्षित बेटे कि बात गंभीरता से लिया| और अगले दिन से ही मसाले, छोले और उसकी गुणवत्ता को कम कर दिया ताकि खर्च कम किया जा सके| फलस्वरूप धीरे-धीरे उसकी दूकान पर लोग कम आने लगे| अथ: उसके सेल में कमी आने लगी| फिर इस कमी को देखते हुए उसने बिजली के खर्च में कमी करने के लिए रौशनी और पखे के खर्च में कटोती कर दिया, फलस्वरूप ग्राहक और कम हो गए|

एक दिन हारा-थका पिता अपने बेटे से बोला “बेटा! पढ़े लिखे होने का फायदा है| देखो तुमने सही समय पर आकर इस मंदी के बारे में पहले ही बता दिया था|”

आज वही पिता दुसरे की दूकान में छोले-पटूरे का कारीगर है और उसका बेटा बेकार घूम रहा है| आखिरकार देश में मंदी के दौर से जो गुज़र रहा है|

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Pradeep Shanker

2 Comments

  1. Excellent wisdom. Recession or inflation,it’s all in the state of mind. Of the head of family. The successful businessman was blinded by his love for the son,and the education he bought for him. Sagacity needs extreme understanding of philosophy ,life and civilization.
    Congrats on a wonderful reminder and post of light.
    Best regards,
    PVR .

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